उत्तरकाशी
रिपोर्ट- महवीर सिंह राणा
भारत-चीन सीमा पर स्थित सीमांत गांव जादूंग में सोमवार को पारंपरिक संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिला। भोटिया और जाड़ समुदाय के सैकड़ों ग्रामीणों ने अपने पैतृक गांव नेलांग और जादूंग पहुंचकर अपने आराध्य देवताओं की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की और पारंपरिक रांसो-तांदी नृत्य के माध्यम से आस्था की अनूठी छटा बिखेरी।
ग्रामीणों ने पांडव चौक और रिंगाली देवी चौक में विशेष पूजा के साथ लाल देवता और रिंगाली देवी की डोलियों की भव्य शोभायात्रा निकाली। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजीं और पौराणिक गीतों की गूंज से संपूर्ण घाटी को भक्तिरस से सराबोर कर दिया। इस ऐतिहासिक अवसर पर सीमा पर तैनात आईबैक्स ब्रिगेड और राजपुताना रायफल्स के अधिकारियों ने ग्रामीणों के लिए विशेष व्यवस्थाएं कीं। साथ ही आरओ प्लांट का लोकार्पण कर जादूंग गांव को स्वच्छ जल की सौगात दी। सैन्य अधिकारियों ने भी पूजा-अर्चना में सहभागिता निभाई।
गौरतलब है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जादूंग, नेलांग व कारछा गांव से ग्रामीणों को विस्थापित कर बगोरी, डुंडा और हर्षिल क्षेत्रों में बसाया गया था। परंपराएं और आस्था आज भी जीवित हैं—ग्रामीण प्रतिवर्ष अपने देवस्थलों में जाकर आराधना करते हैं।