उत्तरकाशी
रिपोर्ट महावीर सिंह राणा।
उत्तरकाशी से गंगोत्री धाम तक मोजूद है पंच प्रयाग स्कंद पुराण के केदारखंण्ड नामक अध्याय में है वर्णन गंगा की संस्कृति को बचाने के लिए हर गांव में गंगा संस्कृति संम्बर्धन केंद्र होंगे स्थापित -स्वामिनी प्रमांनन्दा
जनपद उत्तरकाशी के नेताला में स्वामिनी परमानंद अम्मा ने आश्रम तपस्यलम मे प्रेसवार्ता कर बडेथी से गंगोत्री धाम तक पांच प्रयाग होने की जानकारी दी है उन्होंने बताया कि सन् 1864 में आये बिनाशकारी भूकंप से यहां पर भारी नुक़सान हुआ था जिसके कारण इन पांच प्रयागो के आसपास मोजूद मन्दिर स्नान घाट दब गये थे जिनका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंण्ड नामक अध्याय में वर्णित है पोराणिक काल में श्रद्धालु इन्हीं पांच प्रयागो के दर्शन के पश्चात ही गंगोत्री धाम के दर्शन करते थे पर तत्कालीन राजशाही के कारण भूकंप के बाद इन प्रयागों का विकास नहीं हो पाया था इस लिए भारत सरकार एवं उत्तराखंड सरकार को इन प्रयागों में स्नान घाटों से लेकर यात्रियों के लिए व्यवस्था बनानीं चाहिए ताकि यहां की पोराणिक संस्कृति को लोग जान सकें साथ ही गंगा का अस्तित्व बचाने के लिए प्रत्येक गांव में गंगा संस्कृति केंद्र की स्थापना कर वहां की देव डोलियां वहां का पहनावा वहां का खान-पान को आगे लाने का काम किया जाना चाहिए जिससे चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को देवभूमि का वह रूप दिखाई दे सके जिसकी कल्पना कर वह तीर्थ यात्रा पर आने से पूर्व करते हैं जिससे ग्रामीणों को रोजगार के साथ पलायन पर भी लगाम लगाने में भी कामयाबी हासिल होगी
वहीं उत्तरकाशी के भगवान काशी विश्वनाथ जो वर्णावत गंगा और 80 गंगा के बीच में वरुण यात्रा के दो अंतिम पड़ा है जहां लाखों ग्रामवासी तीर्थ यात्रा पर आते हैं भगवान विमलेश्वर और बिंदेश्वर के दर्शन करते हैं दूसरा भास्कर प्रयाग यहां भट्टवाडी घाटी के नवल नदी जो भास्केश्वर महादेव मंदिर के निकट है वहां पाप हरिणी नदी जिसे स्थानीय लोग पापड़ गार्ड के नाम से जानते हैं यह उसके मध्य है वही सोनप्रयाग यह प्रयाग गंगानी गर्म पानी क्षेत्र के आगे और सॉन्ग घाट और ज्योति गंगा कंडोली घाट के मध्य है सोंन गंगा नीचे के क्षेत्र में बहुमूल्य धातु लेकर आती है जिसको सोना भी कहा जाता है इस नदी को सोने प्राप्त होता है इसलिए संपत प्रदान करने के लिए करने वाली कहते हैं ज्योति गंगा ग्राम वासियों के मां और पैदा कर दिया है क्योंकि यहां ग्लेशियर टूटे रहते हैं वही चौथा हरिप्रयाग यहां प्रज्ञा महाप्रयाग के नाम से भी जाना जाता है यहां मा मिलन भी है यहां 7 नदियों का संगम है वर्तमान में जलधारी नदी सप्त नदियों में महत्वपूर्ण है जबकि इसकी दो धाराएं श्याम गंगा और गुप्त गंगा है वही पांचवी गंगा प्रयाग गंगोत्री घाटी के अंतिम प्रयाग गंगा प्रयाग यहां रूद्र गंगा जैसे गरुड़ गंगा भी कहा गया है
यह केदार गंगा के मध्य है इसलिए उनका कहना है की पांच प्रायांग गंगा घाटी में ही मौजूद है इसके बारे में कुछ लोगों को जानकारी नहीं है उनका मानना है कि हम इन प्रयागों के घाटों का निर्माण करें और यहां नाग देवता की जन्मस्थली है क्योंकि अगर हम उत्तरकाशी से गंगोत्री की ओर देखें तो 80 ग्राम सभाएं पड़ती है जिसमें 80 के 80 ग्राम सभा में नाग देवता अवतरित होते हैं और लोगों के सुख दुख में उनकी सहायता करते हैं अगर किसी को कोई भी शुभ कार्य करना होता है तो लाभ देता है उनका रास्ता दिखाते हैं अगर पूजा पाठ में कोई पंडित गलती से गलत लाइन पड़ता है या गलत मंत्रों का उच्चारण करता है तो नाग देवता उसे तुरंत सही करने को कहते हैं
नाग देवताअगसरी दो विशेष व्यक्तियों के कंधे के ऊपर जो लकड़ी की बनी हुई डोली होती है और उसके अंदर पांच तत्वों से बना हुआ सामान रखा रहता है जिसके कारण यहां देव डोलिया की भाषा ग्रामीणों को इशारे में बताती है जिसकी भाषा सिर्फ स्थानीय ग्रामीण ही समझ सकते हैं अतः इन देव डोलियों का संम्बर्धन भी जरूरी है