उत्तराखंड के सीमांत जिला उत्तरकाशी में पौराणिक धार्मिक सांस्कृतिक बाडाहाट कु थैलू
उत्तरकाशी के बाडाहाट की थोलू अपने आप में एक विशेष महत्व रखता है यह मेला ही नहीं बल्कि एक आस्था का केंद्र भी है क्योंकि यह मकर संक्रांति के दिन से प्रारंभ हो गया जिसका उद्घाटन कंडार देवता व हरि महाराज के सानिध्य मे हुआ
वरुणर्वत पर्वत के नीचे बसा काशी विश्वनाथ नगरी रामलीला मैदान में कंडार देवता व हरि महाराज की आगवानी में जिलाधिकारी डा. मेहरबान सिंह बिष्ट के द्वारा रिबन काटने के साथ ही दीप प्रज्जवलित कर माघ मेला का औपचारिक शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर मेला पांडाल में घण्डियाल देवता, खंडद्वारी देवी, राज-राजेश्वरी देवी, त्रिपुर सुंदरी व दक्षिण काली सहित अनेक देवडोलियों व धार्मिक प्रतीकों की भी उपस्थिति रही।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भारत तिब्बत सीमा एक दूसरे से व्यापार करने इसी वक्त उत्तरकाशी आते थे यहां से भेड़ की उन ले जाते थे और यहां के लोगों को नमक कपड़े जैसी आवश्यक चीजों का आदान-प्रदान किया करते थे जो उस समय का वस्तु विनिमय का सबसे बड़ा व्यापार हुआ करता था जिसके लिए बड़ाहाट का थोलू अपने में एक सुप्रसिद्ध मेला था
समय बीते गया और यहां मेला अब एक भव्य रूप परिवर्तित हो गया है इस मेले को उत्तरकाशी की जिला पंचायत कराती है कन्डार देवता की डोली एवं हरी महराज के ढोल के सानिध्य में माघ मेले का उद्घाटन हुआ
जिसमें उत्तरकाशी टिहरी एवं हिमाचल के लोग बड़ी संख्या में खरीदारी करने आते हैं
इस मेले में स्थानीय कलाकारों को भी मौका दिया जाता है और कई देवी देवताओं की डोली यहां आकर अपना नृत्य भी दिखती है
इस मेले में स्थानीय उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जाता है मनोरंजन के लिए संस्कृत कार्यक्रम के साथ-साथ चरखी मौत के कुएं आदि भी लगाए जाते हैं