कुंड की जातरा गंगा और यमुना का संगम

उत्तरकाशी

उत्तराखंड को देवभूमि ऐसी नहीं कहा जाता है यहां कण कण में ईश्वर का बस है जिसके कई प्रमाण देखने को मिलते हैं वहीं अगर हम बात करें बड़कोट यानी की सहस्त्रनगरी या ऋषि नगरी मैं कुंड की यात्रा का आगाज हो गया है जिसका उद्घाटन बोखानाथ देवता व जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक द्वारा रिबन काटकर शुरुआत कर दी गई जो तीन दिवस मेला मेला होता है जिसका आज समापन हो जाएगा

आखिर क्या है इसका इतिहास जानते हैं इस रिपोर्ट के साथ यह सभी नाम व इनके इतिहाासिकारी काम का संबंध एक ही स्थान से जुड़ा हुआ है, जिन्हें देवों के स्थान या ऋषि मुनियों का स्थान – थान गांव के नाम से जाना जाता है! आज के युग में भी बड़कोट में अनेकों कुंडों अर्थात यज्ञ कुंडो का मिलना व अनेक पौराणिक मूर्तियों का मिलना कोई काल्पनिक दृष्टांत नहीं, अपितु यह साक्ष्य सबूत है एक ऐसी पौराणिक घटना के जिसके इतिहास की गुंज आज भी यमुना घाटी ( रंवाई घाटी ) में गूंजती है! बड़कोट में सभी पौराणिक मूर्तियों का एवं अनेकों कुंडो का संबंध थान से है जिन्हें ब्रह्मपुरी के नाम से जाना जाता है। जो गवाह है एक ऋषि के तपोबल एवं उनकी शक्तियों का। समस्त यमुना घाटी के अंतर्गत ऋषि यमदग्नि एवं उनके पुत्र परशुराम की लिलाएं आज भी प्रख्यात है, जिसका प्रमाण स्कंदपुराण के केदारखण्ड में उल्लेखित है! इसीलिए यमुना घाटी की आराध्य देवी माँ यमुना को ऋषि यमदग्नि की धर्म पुत्री भी कहा जाता है। जिसमें यमुना यमदग्नि एवं यमराज का संबंध बताते हुए लिखा गया है की, कालिंदी नदी ( माँ यमुना का अन्य नाम ) के तट पर ऋषि यमदग्नि का आश्रम स्थित है, जिन्हें ब्रह्मपुरी के नाम से जाना जाता है, जो यमुना के धर्मपिता हैं, जिनके कारण ही यमुना मृत्यलोक पर अवतरण हुई, इसी कारण जहाँ यमदग्नि का वास है , वहाँ मृत्यु के देव यमराज का आना असंभव है, अर्थात अकाल मृत्यु होना असंभव है! यमदग्नि का अर्थ बतलाते हुए आध्य शंकराचार्या लिखते हैं की यम का अर्थ काल और दग्नि का अर्थ दहनी है, अर्थात जो काल के देव को भी दहन कर दे .वो यमदग्नि है, जिनका आश्रम कालिंदी नदी तट पर स्थित है ! यही वो आध्य शंकराचार्या जी थे जिन्होंने ब्रह्मपूरी ( थान गांव ) में ऋषि यमदग्नि का मंदीर भगवान विश्वकर्मा के सहयोग से बनवाया था  !इसी तरह कई उदाहरण मिलते हैं कहां यह भी जाता है कि ऋषि यहां पर स्नान करने में उनका काफी समस्या होती क्योंकि बर्फ से पूरा क्षेत्र ढका हुआ था तो उन्होंने मां गंगा को यही अवतरित किया था इसलिए यहां पर मां गंगा का कुंड भी कहा जाता है जैसे-जैसे समय आगे बड़ा इस मेले को सुंदरता देने के लिए जिला पंचायत उत्तरकाशी ने एक पल की है और इस भव्य रूप दिया जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ-साथ देव डेलिया के के साथ-साथ ग्रामीण रासु नृत्य खेलकूद प्रतियोगिताएं की जाती हैं

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